Tuesday, 31 July 2018


सुरों के बादशाह मोहम्मद रफी साहब

सुरों के बादशाह मोहम्मद रफी साहब की आज पुण्यतिथि है। शहंशाह-ए-तरन्नुम के नाम से जाने जाने वाले मोहम्मद रफी को गुजरे आज 38 बरस पूरे हो गए हैं। आज के ही दिन रफी ने दुनिया को अलविदा कहा था। आइए आज सुनते हैं रफी साहब की बरसी पर उनके खूबसूरत नग्मों को जो आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं।  आज बेशक वह हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी खूबसूरत नग्में आज भी उनकी यादों को ताजा कर देते हैं। उनके गाने आज भी अक्सर लोगों की जुबां से सुनने को मिल जाता है।




मोहम्मद रफी ने 1962 में चीन के खिलाफ अपने गीतों से जंग लड़ी थी। चौंक गए यह बात जानकर, पर ये एक सच है। दरअसल, मोहम्मद रफी चीन के खिलाफ युद्ध लड़ रहे भारतीय सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए जंग के मैदान पर गए थे। रफी की जीवनी के मुताबिक, चीन ने जब हिंदुस्तान पर हमला किया तो रफी चौदह हजार फुट की ऊंचाई स्थित सांगला गए थे और देशभक्ति के गीत गाकर सैनिकों का हौसला बढ़ाया था।

रफी के चाहने वालों का कहना है कि गायकी को उनकी देन इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेगी। लोगों के दिलों में याद रहेगी, लेकिन इस महान नायक का सरकार सम्मान नहीं कर पा रही है। मोहम्मद रफी का नाता गुरुनगरी अमृतसर से है, लेकिन उनको शहर में कोई यादगार नहीं मिल सकी है। अपनी आवाज से आज भी रफी भले ही जिंदा हैं, लेकिन अमृतसर जिले में आज तक उनके नाम से कोई सरकारी संस्थान नहीं खोला गया है।




पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में  24 दिसंबर 1924 को हाजी अली मोहम्मद के परिवार में मोहम्मद रफी का जन्म हुआ था। हाजी अली मोहम्मद के छह बच्चों में से रफी दूसरे नंबर पर थे। उन्हें घर में फीको कहा जाता था। गली में फकीर को गाते सुनकर रफी ने गाना शुरू किया था। 31 जुलाई 1980 को रमजान के महीने से दुनिया से विदा हो गए थे। रफी साहब ने अपने गांव में फकीर के गानों की नकल करते-करते गाना गाना सीखा था।

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